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Wednesday, 25 October 2017

कौन हैं महादेव शिव?

                                                                        

                       कौन हैं महादेव शिव? 

 


महादेव शिव एक ऐसे देव हैं जिनका वर्णन – एक महायोगी, गृहस्थ, तपस्वी, अघोरी, नर्तक और कई अन्य अलग-अलग तरीकों से किया जाता है। क्यों इतने सारे विविध रूप धारण किये थे भगवान शिव
ने?
अगर किसी एक व्यक्ति में इस सृष्टि की सारी विशेषताओं का जटिल मिश्रण मिलता है तो वह शिव हैं। अगर आपने शिव को स्वीकार कर लिया तो आप जीवन से परे जा सकते हैं।

शिव पुराण – भयावह और सुंदर दोनों तरह के चित्रण हैं शिव के

 आमतौर पर पूरी दुनिया में लोग जिसे भी दैवीय या दिव्य मानते हैं, उसका वर्णन हमेशा अच्छे रूप में ही करते हैं। लेकिन अगर आप शिव पुराण को पूरा पढ़ें तो आपको उसमें कहीं भी शिव का उल्लेख अच्छे या बुरे के तौर पर नहीं मिलेगा। उनका जिक्र सुंदरमूर्ति के तौर पर हुआ है, जिसका मतलब ‘सबसे सुंदर’ है। लेकिन इसी के साथ शिव से ज्यादा भयावह भी कोई और नहीं हो सकता।

जो सबसे खराब चित्रण संभव हो, वह भी उनके लिए मिलता है। शिव के बारे में यहां तक कहा जाता है कि वह अपने शरीर पर मानव मल मलकर घूमते हैं। उन्होंने किसी भी सीमा तक जाकर हर वो काम किया, जिसके बारे में कोई इंसान कभी सोच भी नहीं सकता था। अगर किसी एक व्यक्ति में इस सृष्टि की सारी विशेषताओं का जटिल मिश्रण मिलता है तो वह शिव हैं। अगर आपने शिव को स्वीकार कर लिया तो आप जीवन से परे जा सकते हैं।

इंसान के जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष यह चुनने की कोशिश है कि क्या सुंदर है और क्या भद्दा, क्या अच्छा है और क्या बुरा? लेकिन अगर आप हर चीज के इस भयंकर संगम वाली शख्सियत को केवल स्वीकार कर लेते हैं तो फि र आपको कोई समस्या नहीं रहेगी।

योगी, नशेड़ी और अघोरी शिव

 वह सबसे सुंदर हैं तो सबसे भद्दे और बदसूरत भी। अगर वो सबसे बड़े योगी व तपस्वी हैं तो सबसे बड़े गृहस्थ भी। वह सबसे अनुशासित भी हैं, सबसे बड़े पियक्कड़ और नशेड़ी भी। वे महान नर्तक हैं तो पूर्णत: स्थिर भी। इस दुनिया में देवता, दानव, राक्षस सहित हर तरह के प्राणी उनकी उपासना करते हैं। शिव के बारे में तमाम हजम न होने वाली कहानियों व तथ्यों को तथाकथित मानव सभ्यता ने अपनी सुविधा से हटा दिया, लेकिन इन्हीं में शिव का सार निहित है। उनके लिए कुछ भी घिनौना व अरुचिकर नहीं है। शिव ने मृत शरीर पर बैठ कर अघोरियों की तरह साधना की है। घोर का मतलब है – भयंकर। अघोरी का मतलब है कि ‘जो भयंकरता से परे हो’। शिव एक अघोरी हैं, वह भयंकरता से परे हैं। भयंकरता उन्हें छू भी नहीं सकती।

शिव खुद जीवन हैं

कोई भी चीज उनमें घृणा नहीं पैदा कर सकती। वह हर चीज को, सबको अपनाते हैं। ऐसा वह किसी सहानुभूति, करुणा या भावनाओं के चलते नहीं करते, जैसा कि आप सोचते होंगे। वे सहज रूप से ऐसा करते हैं, क्योंकि वो जीवन की तरह हैं। जीवन सहज ही हरेक को गले लगाता व अपनाता है।समस्या सिर्फ आपके साथ है कि आप किसे अपनाएं व किसे छोड़ें और यह समस्या मानसिक समस्या है, न कि जीवन से जुड़ी समस्या। यहां तक कि अगर आपका दुश्मन भी आपके बगल में बैठा है तो आपके भीतर मौजूद जीवन को उससे भी कोई दिक्कत नहीं होगी। आपका दुश्मन जो सांस छोड़ता है, उसे आप लेते हैं। आपके दोस्त द्वारा छोड़ी गई सांसें आपके दुश्मन द्वारा छोड़ी गई सांसों से बेहतर नहीं होती है। दिक्कत सिर्फ मानसिक या कहें मनोवैज्ञानिक स्तर पर है। अस्तित्व के स्तर पर देखा जाए तो कोई समस्या नहीं है।

अघोरी शिव – प्रेम और करुणा से भी परे
एक अघोरी कभी भी प्रेम की अवस्था में नहीं रहता है। दुनिया के इस हिस्से की आध्यात्मिक प्रक्रिया ने कभी भी आपको प्रेम करना, दयालु या करुणामय होना नहीं सिखाया। यहां इन भावों को आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक माना जाता है। दयालु होना और अपने आसपास के लोगों को देखकर मुस्कुराना, पारिवारिक व सामाजिक शिष्टाचार है। एक इंसान में इतनी समझ तो होनी ही चाहिए, इसलिए यहां किसी ने सोचा ही नहीं कि ये चीजें भी सिखानी जरूरी हैं। एक अघोरी जब इस अस्तित्व को अपनाता है तो वह उससे प्रेम के चलते नहीं अपनाता, वह इतना सतही या कहें उथला नहीं है, बल्कि वह जीवन को अपनाता है। वह अपने भोजन और मल को एक ही तरह से देखता है। उसके लिए जिंदा और मरे हुए शरीर में कोई अंतर नहीं है। वह एक सजी संवरी देह और व्यक्ति को उसी भाव से देखता है, जैसे एक सड़े हुए शरीर को। इसकी सीधी सी वजह है कि वह पूरी तरह से जीवन बन जाना चाहता है। वह अपनी दिमागी या मानसिक सोचों के जाल में नहीं फंसना चाहता।


 

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