नागपंचमी का त्यौहार हिंदूओं में बहुत खास त्यौहार माना जाता है। नागपंचमी सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष यह त्यौहार 15 अगस्त को मनाया जाएगा। सावन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन देशभर में मनाए जाने वाले नागपंचमी का पर्व माना जाता है। सनातन धर्म में मोक्ष की प्राप्ति के लिए सर्प विशेषाकार नाग को प्रतीकात्मक रुप में महत्वपूर्ण माना गया है। सनातन धर्म में मोक्ष की प्राप्ति के लिए सर्प विशेषकर नाग को प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण माना गया है। भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन करते हैं। शिव के गले में नाग है। समुद्र मंथन के लिए नाग वासुकी को रस्सी बना कर इस्तेमाल किया गया था। आदिम परंपराओं में सर्पों की माता के रूप में मनसा देवी की पूजा प्रचलित रही है। सामाजिक रूप से इसी वजह से नागों या सर्पों की पूजा शुरू हुई।
शास्त्रों में नागपंचमी का अर्थ
नाग को सुप्त चेतना का प्रतीक माना जाता है। मानस शक्ति मनसा देवी की प्रतीक है और पंचमी तिथि मूलाधार चक्र और सहस्रार चक्र को छोड़कर शेष पांच चक्रों का प्रतीक है। नाग को दूध पिलाना कुंडलिनी के नाग के द्वारा अमृत पान का प्रतीक है। ज्योतिषीय दृष्टि से भी पंचम भाव को मंत्र और आध्यात्मिक जागरण का भाव माना गया है। इसलिए जब इस बार नाग पंचमी का पर्व मनाएं तो इसे अपने जागरण के पर्व में बदल दें।
इसलिए मनाई जाती है नागपंचमी
हिंदू धर्मग्रंथों में नाग को प्रत्येक पंचमी तिथि का देवता माना गया है, परंतु नाग-पंचमी पर नाग की पूजा को विशेष महत्व दिया गया है। नाग-पंचमी का पर्व धार्मिक आस्था व विश्वास के सहारे हमारी बेहतरी की कामना का प्रतीक है। यह जीव-जंतुओं के प्रति समभाव, हिंसक प्राणियों के प्रति भी दयाभाव व अहिंसा के अभयदान की प्रेरणा देता है। आइए, जानें क्यों मनाई जाती है नाग पंचमी...
नागपंचमी मनाने के पीछे कई प्रचलित कहानियां हैं। ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद जो विष निकला उसे पीने को कोई तैयार नहीं था। अंतत: भगवान शंकर ने उसे पी लिया, भगवान शिव जब विष पी रहे थे, तभी उनके मुख से विष का कुछ बूंद नीचे गिरी और सर्प के मुख में समा गई। इसके बाद ही सर्प जाति विषैली हो गई। सर्पदंश से बचाने के लिए ही इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है।
एक और प्रचलित कहानी के अनुसार
नागपंचमी को लेकर एक कहानी यह भी प्रचलित है कि भगवान कृष्ण ने उन्हें यह वरदान दिया था कि जो भी जातक नाग देवता को दूध पिलाएगा, उसे जीवन में कभी कष्ट नहीं होगा। एक बार कालिया नाम के नाग ने प्रतिषोध में पूरी यमुना नदी में विष घोल दिया। इसके बाद यमुना नदी का पानी पीने से बृजवासी बेहोश होने लगे। ऐसे में भगवान कृष्ण ने यमुना नदी के अंदर बैठे कालिया को बाहर निकालकर उससे युद्ध किया। युद्ध में कालिया हार गया और यमुना नदी से उसने अपना सारा विष सोख लिया। भगवान कृष्ण ने प्रसन्न होकर कालिया को वरदान दिया और कहा कि सावन के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन नागपंचमी का त्यौहार मनाया जाएगा और सर्पों की पूजा की जाएगी।
पुराणों में प्रचलित नाग कथा
महाभारत की कथाओं से पता चलता है कि नाग भारत की एक जाति थी जिसका आर्यों से संघर्ष हुआ करता था। आस्तीक ऋषि ने आर्यों और नागों के बीच सद्भाव उत्पन्न करने का बहुत प्रयत्न किया। वे अपने कार्य में सफल भी हुए। दोनों एक-दूसरे के प्रेम सूत्र में बंध गए। यहां तक कि वैवाहिक संबंध भी होने लगे। इस प्रकार अंतर्जातीय संघर्ष समाप्त हो गया। सर्पभय से मुक्ति के लिए आस्तीक का नाम अब भी लिया जाता है।
सर्पासर्प भद्रं ते दूर गच्छ महाविष। जनमेजयस्य यज्ञान्ते आस्तीक वचन समर।।
सर्प मंत्रों से विशेष, आस्तीक के नाम का प्राय: प्रयोग करते हैं। इससे यह भी संकेत मिलता है कि नाग जाति और सर्प वाचक नाग में भी पारस्परिक संबंध है। यह भी प्रसिद्ध है कि पाणिनी व्याकरण के महाभाष्यकार पतंजलि शेषनाग के अवतार थे। वाराणसी में एक नागकूप है जहां अब भी नाग पंचमी के दिन वैयाकरण विद्वानों में शास्त्रार्थ की परम्परा है
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