हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा मानी जाती है। वहीं नागों को भगवान का आभूषण भी माना जाता है। देशभर में नागदेवता के अनेकों मंदिर हैं, इन्हीं मंदिरों में एक प्रमुख व प्राचीन मंदिर है नागचंद्रेश्वर मंदिर। नागचंद्रेश्वर मंदिर मध्यप्रदेश के उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन श्रावण शुक्ल पंचमी यानी नागपंचमी के दिन खोला जाता है। नागपंचमी के दिन ही यहां नागदेवता के दर्शन भक्तों को मिलते हैं।
महाकालेश्वर मंदिर के शिखर पर स्थित श्रीनागचंद्रेश्वर मन्दिर के पट साल में एक बार चौबीस घंटे के लिए सिर्फ नागपंचमी के दिन खुलते हैं। इस वर्ष नागपंचमी 15 अगस्त बुधवार को मनाई जाएगी वहीं मंदिर के पट मंगलवार की रात्रि 12 बजे खोले जाएंगे। पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से त्रिकाल पूजन के बाद नागचंद्रेश्वर महादेव के लगातार चौबीस घंटे दर्शन होंगे। मंदिर के पट 15 अगस्त बुधवार की रात्रि 12 बजे बंद हो जाएंगे। नागपंचमी के इस मौके पर मंदिर में हजारों की संख्या में श्रृद्धालु दर्शन करेंगे। सुरक्षा की दृष्टि से देखें तो प्रशासन ने यहां कड़े इंतजाम किए हैं।
रात 12 बजे होगी त्रिकाल पूजा
मंगलवार की मध्यरात्रि नागपंचमी पर भगवान नागचन्द्रेश्वर की त्रिकाल पूजा होगी। मध्यरात्रि 12 बजे पट खुलने के बाद पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े महंत प्रकाशपुरी एवं कलेक्टर, अध्यक्ष महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति मनीष सिंह द्वारा पूजन किया जाएगा। शासकीय पूजन 15 अगस्त अपराह्न 12 बजे होगा। महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा 15 अगस्त को श्री महाकालेश्वर भगवान की शाम की आरती के बाद पूजन किया जाएगा। इसके बाद श्रद्धालुओं के दर्शन का क्रम प्रारंभ होगा। दर्शनार्थी रात्रि 10 बजे तक ही दर्शन के लिए लाइन में लगेंगे। रात्रि 10 बजे के उपरांत दर्शनार्थियों का प्रवेश वर्जित रहेगा।
सर्प शय्या पर विराजमान हैं भोलेनाथ
महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित श्रीनागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा विराजित है। मंदिर में स्थित इस प्रतिमा में नाग के आसन पर शिव-पार्वती विराजमान हैं। इस अद्भुत प्रतिमा को नेपाल से लाई गई थी। कहा जाता है की उज्जैन के नागचंद्रेश्वर मंदिर के अलावा ऐसी प्रतिमा विश्वभर में कहीं नहीं है। यह प्रतिमा विषअव की एकमात्र प्रतिमा है जोकी इस मंदिर में स्थापित है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्पशय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या दिखाई देती है। शिव शंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।
क्या है पौराणिक मान्यता
सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया. लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है। इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है।
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