मध्यप्रदेश में महाकाल नगरी के नाम से प्रसिद्ध उज्जैन शहर उज्जयिनी के नाम से जाना जाता था। उज्जयिनी में राजा चंद्रसेन का राज था। राजा चंद्रसेन भगवान शिव के परम भक्त थे और शिवगणों में मुख्य मणिभद्र नामक गण राजा चंद्रसेन के मित्र थे। एक बार राजा के मित्र मणिभद्र ने राजा चंद्रसेन को एक चिंतामणि प्रदान की जोकी बहुत ही तेजोमय थी। राजा चंद्रसेन ने मणि को अपने गले में धारण कर लिया। लेकिन मणि को धारण करते ही पूरा प्रभामंडल जगमगा उठा और इसके साथ ही दूसरे देशों में भी राजा की यश-कीर्ति बढ़ने लगी। राजा के प्रति सम्मान और यश देखकर अन्य राजाओं ने मणि को प्राप्त करने के लिए कई प्रयास किए।
लेकिन मणि राजा की अत्यंत प्रिय थी इस कारण से राजा नें किसी को मणि नहीं दी। इसलिए राजा द्वारा मणि ना देने पर अन्य राजाओं नें आक्रमण कर दिया। उसी समय राजा चंद्रसेन भगवान महाकाल की शरण में जाकर ध्यानमग्न हो गया।
जब राजा चंद्रसेन बाबा महाकाल के समाधिस्थ में थे। उस समय वहां गोपी अपने छोटे बालक को साथ लेकर दर्शन के लिए आए। बालक की उम्र महज पांच वर्ष की थी और गोपी विधवा थी। राजा चंद्रसेन को ध्यानमग्न देखकर बालक भी शिव की पूजा करने के लिए प्ररित हो गया। वह कहीं से एक पाषाण ले आया और अपने घर के एकांत स्थल में बैठकर भक्तिभाव से शिवलिंग की पूजा करने लगा। कुछ समय बाद वह भक्ति में इतना लीन हो गया की माता के बुलाने पर भी वह नहीं गया। माता के बार बार बुलाने पर भी बालक नहीं गया। क्रोधित मां में उसी समय बालक को पीटना शुरु कर दिया और पूजा का सारा समान उठा कर फेंक दिया। ध्यान से मुक्त होकर बालक चेतना में आया तो उसे अपनी पूजा को नष्ट देखकर बहुत दुःख हुआ। अचानक उसकी व्यथा की गहराई से चमत्कार हुआ। भगवान शिव की कृपा से वहां एक सुंदर मंदिर निर्मितहुआ मंदिर के मध्य में दिव्य शिवलिंग विराजमान था एवं बालक द्वारा सज्जित पूजा यथावत थी। यह सब देख माता भी आश्चर्यचकित हो गई।
जब राजा चंद्रसेन को इस घटना की जानकारी मिली तो वे भी उस शिवभक्त बालक से मिलने पहुंचे। राजा चंद्रसेन के साथ-साथ अन्य राजा भी वहां पहुंचे। सभी ने राजा चंद्रसेन से अपने अपराध की क्षमा मांगी और सब मिलकर भगवान महाकाल का पूजन-अर्चन करने लगे। तभी वहां रामभक्त श्री हनुमानजी अवतरित हुए और उन्होंने गोप-बालक को गोद में बैठाकर सभी राजाओं और उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित किया। अर्थात 'शिव के अतिरिक्त प्राणियों की कोई गति नहीं है। इस गोप बालक ने अन्यत्र शिव पूजा को मात्र देखकर ही, बिना किसी मंत्र अथवा विधि-विधान के शिव आराधना कर शिवत्व-सर्वविध, मंगल को प्राप्त किया है। यह शिव का परम श्रेष्ठ भक्त समस्त गोपजनों की कीर्ति बढ़ाने वाला है। इस लोक में यह अखिल अनंत सुखों को प्राप्त करेगा व मृत्योपरांत मोक्ष को प्राप्त होगा।
इसी के वंश का आठवां पुरुष महायशस्वी नंद होगा जिसके पुत्र के रूप में स्वयं नारायण कृष्ण नाम से प्रतिष्ठित होंगे। कहा जाता है भगवान महाकाल तब ही से उज्जयिनी में स्वयं विराजमान है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में महाकाल की असीम महिमा का वर्णन मिलता है। महाकाल को वहां का राजा कहा जाता है और उन्हें राजाधिराज देवता भी माना जाता है।
No comments:
Post a Comment