हिन्दू धर्म में शास्त्रों के अनुसार की गयी वैदिक पूजा को ही सर्वश्रेष्ठ पूजा कहा गया है यदि पूर्ण श्रद्धा एवं विधि विधान पूर्वक पूजा आराधना कि जाये, तो निष्चित रूप से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यदि साधक को किसी कार्य को पूर्ण करने में अड़चनें आ रही हो, या किसी कारणवष वह कार्य पूर्ण नहीं हो रहा हो, या किसी साधना को बारबार करने पर भी सिद्धि प्राप्त नहीं हो रही हो तो उसके लिए आवश्यक है कि पूजा करने के लिए आप कौनसा आसन उपयोग कर रहे है । अगर अपनी पूजा का पूरा फल चाहते हैं तो पूजा में बैठने के लिए नीचे बतायें गये आसनों पर बैठकर पूजा करे ।
शास्त्रों में कहा गया हैं कि जिस स्थान पर श्री भगवान को बिठाया जाता है उसे दर्भासन कहते हैं और साधक भक्त जिस पर बैठता है, उसे आसन कहते हैं । साधक को कभी खुली जमीन पर बैठ कर जप, पूजा उपासना नहीं करनी चाहिए । ऐसा करने से पूजा का पुण्य जमीन में उतर जाता है, इसलिए पूजा का आसन व वस्त्र अलग रखने चाहिए। जो शुद्ध रहे लकड़ी की चौकी, घास फूस से बनी चटाई, पत्तों से बने आसन पर बैठ कर पूजा करने से भक्त को मानसिक अस्थिरता, बुद्धि की भटकन, मन की डांवांडोल स्थिति, उच्चाटन, रोग-शोक आदि देते हैं ।
जाने किस पूजा के लिए किसका आसन उत्तम है ।
1- कंबल का आसन
कंबल के आसन पर बैठ कर पूजा करना सर्वश्रेष्ठ कहा गया है लाल रंग का कंबल माँ भगवती, लक्ष्मी, हनुमानजी आदि की पूजा के लिए तो सर्वोत्म माना गया हैं ।
2- कुशा का आसन
कुशा का आसन योगियों के लिए यह आसन सर्वश्रेष्ठ हैं यह कुशा नामक घास से बनाया जाता है, जो भगवान के शरीर से उत्पन्न हुई है । इस आसन पर बैठ कर पूजा करने से सर्वसिद्धि मिलती है । किसी भी मंत्र को सिद्ध करने में कुषा का आसन सबसे अधिक प्रभावी है।लेकिन विशेष कर पिंडदान, श्राद्ध कर्म इत्यादि के कार्यों में कुशा के आसन का प्रयोग नहीं करना चाहिए, इससे अनिष्ट होने संभावना होती है ।
3- हिरन के चमड़े का आसन
हिरन के चमड़े का आसन यह बह्मचर्य, ज्ञान, वैराग्य, सिद्धि शांति एवं मोक्ष प्रदान करने वाला सर्वश्रेष्ठ आसन हैं । इस पर बैठ कर पूजा करने से सारी इंद्रियां संयमित रहती है कीड़े-मकोड़ों, रक्त, विकार, वायु- पित विकार आदि से साधक की रक्षा होती है । यह शारीरिक ऊर्जा भी प्रदान करता है । लेकिन गृहस्थ जीवन के साधकों को इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
1- बाघ के चमड़े का आसन
बाघ के चमड़े का आसन का प्रयोग बड़े बड़े सन्यासी, योगी तथा साधु महात्मा एवं स्वयं भगवान महादेव करते हैं । इस आसन पर साधना करने से सात्विक गुण, धन वैभव, भू संपदा, पद प्रतिष्ठा आदि की प्राप्ति होती हैं ।
आसन पर बैठने का नियम
1- किसी भी नए आसन पर बैठने से पहले आसन का पूजन करना चाहिए या एक चम्मच जल एवं एक फूल आसन के नीचे अवश्य रखना चाहिए ।
2- आसन देवता से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि हे आसन मैं, जब तक आपके ऊपर बैठ कर पूजा करूं तब तक आप मेरी रक्षा करें तथा मुझे मेरी मनोवांछित सिद्धि प्रदान करें ।
2- आसन देवता से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि हे आसन मैं, जब तक आपके ऊपर बैठ कर पूजा करूं तब तक आप मेरी रक्षा करें तथा मुझे मेरी मनोवांछित सिद्धि प्रदान करें ।
3- पूजा में किसी दूसरे के आसन का नहीं करना चाहिए ।
4- आसन विनियोग के बाद साधक पहले पूर्व या उत्तर दिशा की ओर भगवान के सम्मुख घी का दीपक जरूर जलावें, और दीपक जलाते समय इस वैदिक मंत्र का उच्चारण करना चाहिए ।
ऊँ अग्नि ज्योतिः परंबह्म दीपो ज्योतिर्जनारदनः ।
दीपो हरतु मे पापं, दीप ज्योतिः नमोस्तुते ।।
दीपो हरतु मे पापं, दीप ज्योतिः नमोस्तुते ।।
5- पूजा समाप्त होने के बाद अपने आसन को स्वयं ही मोड़ कर ऐसी जगह रखना चाहिए जहां उसे कोई दूसरा स्पर्श नहीं कर सके ।
No comments:
Post a Comment