भारत चमत्कारों और आस्था का देश है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक कई चमत्कारिक मंदिर और गुफाएं हैं। इन्हीं चमत्कारी मंदिरों में से एक ऐसा मंदिर है जहां जाने वाला व्यक्ति पत्थर बन जाता है। यहां रहने वाले लोगों का मानना है की इस शहर पर किसी भूत का साया है, तो कोई कहता है कि इस शहर पर एक साधु के शाप का असर है। यहां के सभी लोग उसके शाप के चलते पत्थर बन गए थे और यही वजह है कि आज भी उस शाप के डर के चलते लोग वहां नहीं जाते हैं। किराडू का यह रहस्यमय मंदिर राजस्थान के कई रहस्यमयी स्थानों में से एक है। यह कोई शाप है, जादू है, चमत्कार है या भूतों की हरकत- कोई नहीं जानता। हालांकि किसी ने यह जानने की हिम्मत भी नहीं की।
राजस्थान में खजुराहो मंदिर के नाम से प्रसिद्घ यह मंदिर आकर्षक तो है, लेकिन इसकी खौफनाक सच्चाई जानने के बाद कोई व्यक्ति यहां शाम को नहीं जाता, इस मंदिर में शाम ठहरने की किसी में हिम्मत नहीं है। किराडू के मंदिर विषय में ऐसी मान्यता है कि यहां शाम ढ़लने के बाद जो भी रह जाता है। वह या तो पत्थर का बन जाता है या मौत की नींद सो जाता है। किराडू के विषय में यह मान्यता वर्षों से चली आ रही है। पत्थर बन जाने के डर से यहां शाम ढ़लते ही पूरा इलाका विरान हो जाता है।
किराडू के लोग ऐसे बने पत्थर के
वर्षों पहले किराडू में एक तपस्वी पधारे। इनके साथ शिष्यों की एक टोली थी। तपस्वी एक दिन शिष्यों को गांव में छोड़कर देशाटन के लिए चले गए। इस बीच शिष्यों का स्वास्थ्य खराब हो गया। गांव वालों ने इनकी कोई मदद नहीं की। तपस्वी जब वापस किराडू लौटे और अपने शिष्यों की दुर्दशा देखी तो गांव वालों को शाप दे दिया कि जहां के लोगों के हृदय पाषाण के हैं वह इंसान बने रहने योग्य नहीं हैं इसलिए सब पत्थर के हो जाएं। एक कुम्हारन थी जिन्होंने शिष्यों की सहायता की थी। तपस्वी ने उस पर दया करते हुए कहा कि तुम गांव से चली जाओ वरना तुम भी पत्थर की बन जाओगी। लेकिन याद रखना जाते समय पीछे मुड़कर मत देखना। कुम्हारन गांव से चली गई लेकिन उसके मन में यह संदेह होने लगा कि तपस्वी की बात सच भी है या नहीं वह पीछे मुड़कर देखने लगी और वह भी पत्थर की बन गयी। सिहणी गावं में कुम्हार की पत्थर की मूर्ति आज भी उस घटना की याद दिलाती है।
11वीं शताब्दी में हुआ था मंदिर का निर्माण
किराडु के मंदिरों का निर्माण किसने कराया इस बारे में कोई तथ्य मौजूद नहीं है। यहां पर पर विक्रम शताब्दी 12 के तीन शिलालेख उपलब्ध हैं। पहला शिलालेख विक्रम संवत 1209 माघ वदी 14 तदनुसार 24 जनवरी 1153 का है जो कि गुजरात के चालुक्य कुमार पाल के समय का है। दूसरा विक्रम संवत 1218, ईस्वी 1161 का है जिसमें परमार सिंधुराज से लेकर सोमेश्वर तक की वंशावली दी गई है और तीसरा यह विक्रम संवत 1235 का है जो गुजरात के चालुक्य राजा भीमदेव द्वितीय के सामन्त चौहान मदन ब्रह्मदेव का है। इतिहासकारों का मत है कि किराडु के मंदिरों का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था तथा इनका निर्माण परमार वंश के राजा दुलशालराज और उनके वंशजों ने किया था।
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