श्रावण शुक्ल की त्रयोदशी तिथि को ओणम पर्व मनाया जाता है। केरल के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक ओणम भी है। वैसे तो ओणम पर्व पर दस दिन का उत्सव मनाया जाता है लेकिन इसके दो दिन काफी महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान लोग खुद सजते हैं और अपने घर को भी सजाते हैं, अच्छे-अच्छे पकवान बनाते हैं, नृत्य करते हैं और रंगोली बनाते हैं। ओणम का त्योहार अगस्त-सितंबर माह में मनाया जाता है। इस साल ओणम 24 और 25 अगस्त को मनाया जा रहा है। 24 अगस्त को उथ्रादम पहला ओणम और 25 अगस्त यानि आज थिरूओणम प्रमुख ओणम मनाया जाएगा। मान्यताओं के अनुसार थिरूओणम के दिन असुर राजा महाबली अपनी प्रजा से मिलने धरती पर आते हैं और उन्हीं के स्वागत में यह पर्व धूम-धाम से मनाया जाता है।
ओणम पर्व का महत्व
महाबली एक असुर राजा था और उसी के आदर स्वरुप लोग ओणम का पर्व मनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि ओणम के दिन ही राजा महाबली ने भगवान विष्णु से अपनी प्रजा से साल में केवल एक बार मिलने की अनुमति मांगी थी। इस त्योहार को फसल पकने की खुशी में भी मनाया जाता है। इसी प्रसन्नता में श्रावण देवता और फूलों की देवी का पूजन हर घर में होता है। यह बिलकुल दशहरे की तरह होता है, इसमें 10 दिनों के लिए घरों को फूलों से सजाने का कार्यक्रम चलता है। जिसमें लोग आपस में मिल-जुलकर खुशियां मनाते हैं। केरल में इन दिनों केरल में चाय, अदरक, इलायची, काली मिर्च तथा धान की फसल पक कर तैयार हो जाती है और लोग फसल की अच्छी उपज की खुशी में ये त्यौहार मानकार खुशियांं बाटतें हैं। इसमें लोग मंदिरों में नहीं, बल्कि घरों में पूजा करते हैं। यह माना जाता है कि थिरूओणम के दिन महाबली घर में पधारते हैं। इसलिए एक दिन पहले उथ्रादम की रात में ही घर की साफ सफाई कर घर को सजा दिया जाता है। फिर थिरूओणम के दिन सुबह पूजा होती है और इसके बाद लोग नाश्ता करते हैं। दोपहर के समय 20 से ज्यादा पकवान बनाए जाते हैं। शाम में दोबारा पूजा होती है। इस दिन घरों में सिर्फ शाकाहार भोजन ही तैयार किया जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार इलसिए मनाया जाता है ओणम का त्यौहार
पुराणों में वर्णित है कि प्राचीन काल में राजा बलि नामक दैत्य राजा हुआ करते थे। उनकी अच्छाइयों के कारण जनता उनके गुणगान करती थी। उनका यश बढ़ते देखकर देवताओं को चिंता होने लगी तब उन्होंने भगवान विष्णु से अपनी बात कही। देवताओं की बात सुनकर विष्णु भगवान ने वामन रूप धारण कर राजा बलि से दान में तीन पग भूमि मांग ली। वामन भगवान ने दो पग में धरती और आकाश नाप लिया। तीसरा पग रखने के लिए उनके पास जगह ही नहीं थी। तब राजा बलि ने अपना सिर झुका दिया। वामन भगवान ने पैर रखकर राजा को पाताल भेज दिया। लेकिन उसके पहले राजा बलि ने साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने आने की आज्ञा मांग ली। सदियों से ऐसी मान्यता चली आ रही है कि ओणम के दिन राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने आते हैं, इसी खुशी में मलयाली समाज ओणम मनाता है। इसी के साथ ओणम नई फसल के आने की खुशी में भी मनाया जाता है।
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