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Tuesday, 21 August 2018

22 अगस्त को पुत्रदा एकादशी, इस दिन व्रत करने मात्र से मिलता है वाजपेय यज्ञ करने का फल


22 अगस्त, बुधवार को सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है। सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। पुत्रदा एकादशी को पवित्रा एकादशी भी कहा जाता है। पुत्रदा या पवित्रा एकादशी का व्रत श्रृद्धा और नियमानुसार रखने से व्यक्ति के पूर्व जन्म के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति को संतान सुख प्राप्त होता है, व्यक्ति सभी सुखों को प्राप्त करता है। पवित्रा एकादशी का व्रत करने वाले जातक को प्रातः काल स्नान ध्यान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। दिनभर व्रत रखकर संध्या के समय भगवान का पूजन करके प्रसाद दूसरों में बंटकर ग्रहण करें। रात्रि जागरण करके भगवान का भजन कीर्तन करें। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि के दिन को ब्रह्मणों को भोजन करवाएं और दान-दक्षिणा सहित विदा करें। इस व्रत को विधि अनुसार करने से व्यक्ति को वाजपेय यज्ञ करने का फल मिलता है और आपको भगवान विष्णु द्वारा मनवांछित फल भी मिलता है।
EKEDASHI
पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा
प्राचीन काल में एक नगर में राजा महिजीत राज करते थे। निःसंतान होने के कारण राजा बहुत दुःखी थे। मंत्रियों से राजा का दुःख देखा नहीं गया और वह लोमश ऋषि के पास गये। ऋषि से राजा के निःसंतान होने का कारण और उपाय पूछा। महाज्ञानी लोमश ऋषि ने बताया कि पूर्व जन्म में राजा को एकादशी के दिन भूखा प्यासा रहना पड़ा। पानी की तलाश में एक सरोवर पर पहुंचे तो एक ब्यायी गाय वहां पानी पीने आ गई। राजा ने गाय को भगा दिया और स्वयं पानी पीकर प्यास बुझाई। इससे अनजाने में एकादशी का व्रत हो गया और गाय के भगान के कारण राजा को निःसंतान रहना पड़ रहा है। लोमश ऋषि ने मंत्रियों से कहा कि अगर आप लोग चाहते हैं कि राजा को पुत्र की प्राप्ति हो तो श्रावण शुक्ल एकादशी का व्रत रखें और द्वादशी के दिन अपना व्रत राजा को दान कर दें। मंत्रियों ने ऋषि की बताई विधि के अनुसार व्रत किया और दान कर दिया। इससे राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई। इस कारण पवित्रा एकादशी को पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है।

EKEDASHI
एकादशी के दिन करें ये उपाय
1. जिन दंपतियों को संतान सुख प्राप्त नहीं होता है या संतान पैदा होती है लेकिन उसकी मृत्यु हो जाती है तो ऐसी दंपत्ती के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना काफी अच्छा साबित होता है। इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर किसी पीपल के पेड़ के पास जाकर उसकी जड़ में चांदी के लोटे से कच्चे दूध में मिश्री मिलाकर चढ़ाएं। पीपल के तने पर सात बार मौली लपेटकर संतान की अच्छी सेहत की प्रार्थना करें या संतान की कामना करें।
2. जिस की संतान हो लेकिन जन्म से ही बीमार रहती हो तो उसके लिए पुत्रदा एकादशी के दिन व्रत तो करें लेकिन उसके साथ 11 गरीब कन्याओं को भोजन भी करवाएं तथा उसे श्रृद्धानुसार कुछ उपहार भेंट करें।
3. संतान के अच्छे करियर के लिए इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ शिव परिवार का पूजन अवश्य करें। भगवान विष्णु के मंदिर में घी का दान करें और शिव मंदिर में मावे की मिठाई दान करें। इसके साथ शिवजी का अभिषेक भी करें।



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