उन्नति, खुशहाली और सर्वत्र मंगलकारी देवता भगवान अष्टविनायक श्रीगणेश जी हैं को कहा जाता हैं । शास्त्रानुसार जहां भी गणेश जी की नित्य पूजा अर्चना होती है वहां रिद्घि-सिद्घि और शुभ लाभ का वास बना रहता हैं । ऐसे स्थान पर किसी भी तरह की अमंगलकारी घटनाएं और दुख दरिद्रता नहीं आती है, इसलिए गणेश जी की पूजा हर घर में होती ही हैं । अगर आप भी अष्टविनायक की कृपा के पात्र बनना चाहते हैं तो ऐसे करें उनका पूजन ।
हिन्दू धर्म के लोग अपने घरों में गणेश जी की मूर्ति और तस्वीर या सुपारी को प्रतीक रूप में रखते हैं । गणेश शब्द का अर्थ है गणों का स्वामी । हमारे शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां तथा चार अंतःकरण हैं तथा इनके पीछे जो शक्तियां हैं उन्हीं को चौदह देवता कहते हैं । वास्तु शासत्र के अनुसार जिस भी घर के मुख्य द्वार पर गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर होती हैं उस घर में रहने वाले लोगों की भरपूर उन्नति सदैव होती है । हिंदू धर्म में भगवान श्री गणेश का अद्वितीय महत्व है । पूजा-पाठ हो या विधि-विधान, हर मांगलिक, वैदिक कार्यों को प्रारंभ करते समय सर्वप्रथम भगवान गणपति का सुमरन करते हैं । यह बुद्धि के अधिदेवता विघ्ननाशक हैं ।
अष्टविनाय के बारे में स्वयं देव ऋषि नारद जी का कथन
अथ नारद उवाच
अथ नारद उवाच
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् । भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुःकामार्थसिद्धये ।।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् । तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ।।
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च । सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् । एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः । न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम् ।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् । पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।
जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभते । संवत्सरेण सिद्धि च लभते नात्र संशयः ।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् । तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ।।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् । तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ।।
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च । सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् । एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः । न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम् ।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् । पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।
जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभते । संवत्सरेण सिद्धि च लभते नात्र संशयः ।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् । तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ।।
अर्थात
नारदजी कहते हैं पहले मस्तक झुकाकर गौरीपुत्र विनायकदेव को प्रणाम करके प्रतिदिन आयु, अभीष्ट मनोरथ और धन आदि प्रयोजनों की सिद्धि के लिये भक्तवास गणेशजी का स्मरण करे; पहला नाम ‘वक्रतुण्ड’ है, दूसरा ‘एकदन्त’ है, तीसरा ‘कृष्णपिंगाक्ष’ है, चौथा ‘गजवक्त्र’ है, पाँचवाँ ‘लम्बोदर’, छठा ‘विकट’, सातवाँ ‘विघ्नराजेन्द्र’, आठवाँ ‘घूम्रवर्ण’, नवाँ ‘भालचन्द्र’, दसवाँ ‘विनायक, ग्यारहवाँ ‘गणपति’ और बारहवाँ नाम ‘गजानन’ है । जो मनुष्य सबेरे, दोपहर और सायं तीनों संध्याओं के समय प्रतिदिन इन बारह नामों का पाठ करता है, उसे विघ्न का भय नहीं होता । यह नाम-स्मरण उसके लिये सभी सिद्धियों का उत्तम साधक है। इन नामों के जप से विद्यार्थी विद्या, धनार्थी धन, पुत्रार्थी अनेक पुत्र और मोक्षार्थी मोक्ष पाता है । इस गणपतिस्तोत्रका नित्य जप करे । जपकर्ता को छः महीने में अभीष्ट फलकी प्राप्ति होती है। एक वर्ष तक जप करने से मनुष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है, इसमें संशय नहीं है । जो इस स्तोत्र को लिखकर आठ ब्राह्मणों को अर्पित करता है, उसे गणेशजी की कृपा से सम्पूर्ण विद्या की प्राप्ति होती है ।
अष्टविनायक का पूजन अपने घर में या आसपास के किसी गणेश मंदिर में कर सकते हैं । इसके अलावा अगर भगवान श्री अष्टविनायक का विशेष पूजन इन सिद्ध स्थानों में जाकर पूजा की जाय तो श्री अष्टविनायक शीघ्र प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान देते हैं ।
श्री अष्टविनायक सिद्ध मंदिर
1- श्री मयूरेश्वर मंदिर । 2- श्री सिद्धिविनायक (सिद्धटेक) । 3- श्री बल्लालेश्वर मंदिर ।
4- श्री वरदविनायक मंदिर । 5- श्री चिंतामणी गणेश मंदिर ।
6- श्री गिरिजात्मज अष्टविनायक । 7- श्री विघनेश्वर अष्टविनायक ।
8- श्री महागणपति मंदिर ।
ऐसे करें अष्टविनायक का पूजन
जो भी व्यक्ति श्री गणेश जी के इन अष्टविनायक स्वरूपों की विधि विधान से पूजन करते हैं उनकी हर मनोकामना पूर्ण होकर ही रहती है । ब्रह्म मुहूर्त में स्नान के बाद सबसे पहले गाय के घी का 8 बत्ती वाला दीपक, हल्दी, कुमकुम, पीले चावल, पीले फूल, दूर्वा, पान सुपारी, जनेऊ, मोदक, श्रीफल, पीताबंरी वस्त्र, ऋतुफल, कलावा एवं गंगाजल आदि सोलह प्रकार के पदार्थों से विशेष पूजन करें । पूजन के बाद कुशा के आसन पर बैठकर श्री गणेश के इस मंत्र का कम से कम 1100 बार जप विधान है । पूजा एवं जप समाप्त होने के बाद गरीबों को कुछ दान अवश्य करें या भोजन करायें, इससे अष्टविनाय धन धान्य से परिपूर्ण कर देते हैं ।
मंत्र-
।। ॐ वक्रतुंडाय हुम् ।।
इस मंत्र का जप करें ।
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